Thursday 2 April 2020

चित्रण

उसकी व्याख्या क्यूँ नहीं करते हमें?” 
एक बार किसी दावत में किसी ने मुझसे पूछा।
मैने थोड़ी देर सोचा की क्या वर्णन करूँ उसका।
अरे भई दिखने में कैसी है?” तभी एक और सज्जन ने दर्शाई उत्तेजना
मैंने कहा "कह नहीं सकता, भ्रान्ति में हूँ” और फिर कुछ गुनगुना शुरू किया...
वो सांवली है, केश घुंगराले है उसके, ओंठ है रक्त रंजित,
नहीं नहीं...
रंग साफ़ है, लम्बी है, नहीं, प्यारे से नाटे कद की है, मै हूँ संशयित।
क्या?
हां, अम्म… आ...
गालों में कमल मानिंद लालिमा है,  
नहीं
टमाटर जैसे रसवान हैं, गोल-गोल, पिलपिले,
माफ़ करना, याद पर मेरी छाई कालिमा है
नाक चमकीली है, उसी चमक के नीचे एक गहरा भूरा तिल भी है,
स्वस्थ है, खुश है, और जीवन से सराबोर भी है?
हँसी… उसकी हँसी… थोड़ी शूकर के जैसी, कुछ मेरे जैसी है,
ज़्यादातर खिलखिलाहट, गुदगुदाहट से भरी है,
और ठहाकों में उत्सवों की अग्निक्रीड़ा है
चुहल ऐसी जो लोटपोट करदे,  
इसलिए आप ज़रा एहतियात बरतें।
ताने कटाक्ष से भरे हैं उसके; किन्तु द्वेषपूर्ण? निर्दई?
कतई नहीं!
संजीदा? हाँ ज़रूर,
केवल प्रेम और सौहार्द, यही छुपा है उसके मन में,
और हो सकता है शायद कुछ ग़ुरूर 
छोटा मोटा कपट भी हैं और छद्म भी
किन्तु मन की निर्दोष है बेहद ही
सामान्य वक्ष की है मगर सीने में समुद्र समाए रहती है,
दुबली है पर, ठोड़ी जब छाती से लगाकर हंसती है 
तो नीचे उसके गुलाबी रंग का एक लोथड़ा दिखता है,  
मानो उसकी एक और ठोड़ी जैसे निकली है
भुजाएँ मांसल, कलाइयाँ लचीलीं, अंगुलियाँ पैनी,  
नहीं-नहीं
मोटी और गद्देदार, गाल खींचले जैसे रैनी।
बाल लंबे, घने, पीतल जैसे, मख़मली,  
सीध...
गज़ब करते हो यार, कभी कुछ बकते हो, कभी कुछ” 
सभा में से एक आदमी चिल्लाया
मै तो अपनी सचाई व्यक्त कर रहा हूँ बंध, 
ऐसी ही तिरिया पर मेरा दिल आया।
तुम्हारे आयाम के सत्य-निरिक्षण के खाँचे में 
मेरी असलियत का द्रव नहीं ढल पाएगा
तब एक महाशय बड़ी खीज में चिंघाड़े  
छोड़ ये बकवास मूर्ख! कम से कम, तु आज उसका नाम कह जाएगा?
नाम? नाम कल्पना है, कदाचित, अ… नहीं-नहीं, कामना

गंगलोड़ू

नदी किनारे एक बड़े से ढुंगे1 के ऊपर बैठा मैं कुछ सोच रहा था, क्या? पता नहीं | सर्दियों का अंत हो रहा था, पर फिर भी आज सुबह, सूर्य की आहट होने के कुछ समय पहले, मंदी बर्फ़ गिरी थी | कभी तेज़ वेग से बहती नदी, कुछ कोस आगे बने बाँध के निर्माण से, अब विरल हो चली थी | इसी विरल नदी का एक सुस्त, शीर्ण सा किनारा किसी कुंद धार की तरहं पत्थरों को अध्गीला कर रहा था | उस आलसी किनारे ने नदी के गोल गंगलोड़ों2 को, दोनों दिशाओं में, मीलों तक, दो वर्गों में बाँट दिया था | कुछ(जो दीर्घकाल से नदी के भीतर थे) चिफले3 , कुछ सूखे और उनमे से कई सूखे गंगलोड़े ऐसे भी थे जिनके ऊपर श्वेत बर्फ़ अलंकृत थी | यही बर्फ़ से ढके गंगलोड़े और उनके बगल में बहती नदी का धीमा किनारा मेरी मन:स्थिति को पारलौकिकता में भेज रहा था | इस भव्य दृश्य ने मेरे निर्विचार मंथन को और भी गहरा कर दिया था | तभी नदी के दुसरे किनारे से आती एक नर्म खिलखिलाहट ने मेरे ध्यान समेत मेरी दृष्टी को उस पार खींचा | वह किनारा, किसी टापू-तट की तरहं, बालू से सम्पूर्ण था और उसमे मेरी ओर के किनारे की अपेक्षा कम गंगलोड़े थे | उसी ठंडी, गदगदी बालू पर नंगे पैरों में एक छोटी नौनी4 खेल रही थी | परन्तु उसका यह खेल कोई साधारण खेल नहीं था | सफ़ेद कपड़ों और अपने चाँदनीं बालों की प्यारी सी चोटी में सजी वह बच्ची अपने इर्दगिर्द नाना प्रकार के, छोटे-बड़े ढुंगे इकठ्ठा कर रही थी | कुछ पत्थर उसकी हतेली में आ जाते तो कुछ, भारी भरकम, बड़ी मश्क़त्त (पर पूरे उत्साह में) के बाद, उसके द्वारा तय की गयी सुनियोजित जगह पर जम जाते | वो उन आड़े-तिरछे, गोल-सपाट ढुंगों को एक के ऊपर एक, बड़े विचित्र कोणों पर अकल्पनीय रूप से संतुलित कर ये मीनार मानिंद ढांचे खड़ी कर रही थी | जब अंततः उसने इन अविश्वसनीय मीनारों से बने घेरे को पूर्ण किया तो उसकी ख़ुशी का कोई क्षितिज नहीं था | वह उल्लास में उस घेरे के अंदर बाहर, नाचती-फांदती फिर रही थी और उसकी हँसी की संतोषजनक आवाज़ें नदी की कल कल करती ध्वनि की साथ मिलकर पूरी घाटी में एक आलौकिक संगीत बजा रही थी | मै इसी संगीत और रमणीय दृश्य में प्रमात हो गया था | तभी बादलों की गरज और सर पर पड़ते ढाँडों5 की मार ने मेरी मादकता तोड़ कर मुझे धरातल वापस बुलाया | मेरी नज़र जब उस पार पड़ी तो वहाँ कोई भी नहीं था | वह छोटी नौनी गीली रेत पर अपने नन्हे पदचिन्ह छोड़ कर उसी तरहं पहाड़ों में कहीं ग़ायब हो गई थी जिस प्रकार मेरे सर के ऊपर का सूरज पहाडों के पीछे कहीं चुप गया था | सब कुछ बदल गया था | यह बदलाव था सुस्त नदी का वेग में, सुबह का शाम में, धुप का बारिश में, संगीत का शोर में और समक्षता का एकांत में बदलना | यदि कुछ नहीं बदले थे तो बस उस नौनी द्वारा रचित गंगलोड़ों के अविश्वसनीय रूप से संतुलित ढांचे | किन्तु हाँ, उन गंगलोड़ों के ऊपर अब बर्फ़ की जगह ढाँडों का मुकुट सजा था |
गढ़वाली Glossary : 1. ढुंगे - बड़े पत्थर
2. गंगलोड़ों - नदी किनारे के गोल पत्थर
3. चिफले - फिसलन भरे
4. नौनी - लड़की
5. ढाँडों - ओले