सर सर सर सर... सरल, सलील, चली वात आर्द्र, मस्तानी,
वर्षा भी है सखी मृदुल, नभ में है खींचातानी,
चाहे दिन का आदित्य हो प्रबल,
या रात का मादक सोम नीरव,
जब छाए मेघ पके चित्रफलक पर,
झुक-छुप गए, दोनों देव देख ऋतू-वेग की तानाशाही,
सर सर सर सर... सरल, सलील, चली वात आर्द्र, मस्तानी|
थे छत पर तप-तप, टिप-टिप चूंते परित्यक्त परिधान उदास,
हे मतवाली! प्रवाह से जीसके हुए बावरे, लहरा रहे हैं अब उल्लास,
पर भाग रहे हैं इधर उधर, घबराते, छिपते कुछ इंसान,
कुछ है खीज, कुछ तटस्थ तो कुछ हैं खिले हुए व शांत,
कुछ हुए हैं धन्य इतने दे रहे है बांग,
"या खुदा तेरी मेहरबानी!"
सर सर सर सर... सरल, सलील, चली वात आर्द्र, मस्तानी|
टिन, तिरपाल, झुग्गियों की छिछली, दुर्बल छतें,
सब कर डोल रहीं उन्मुक्त,
गलियों के गड्ढे, सड़कों के नरमोखे,
जो थे कोरे, खाली,
अब उबल रहे विकट, मचाते तबाही,
पल में भिगा के फिर सुखा रही है,
फिर भी नहीं है कोई अणु शुष्क,
कहीं सज रहें हैं खेत, कहीं हो रही बहाली,
सर सर सर सर... सरल, सलील, चली वात आर्द्र, मस्तानी|
आकाश में अब बस उड़ रहीं हैं प्लास्टिक की थैलियाँ,
पेड़ो, इमारतों की ओठ लिए पंछी ओझल हैं,
पत्ते, खंबे, वाहन, खिड़की बजा रहे वाद्य, बाँसुरियाँ,
कुछ लिखते गीत, कुछ कह रहे ग़ज़ल हैं,
कुछ डूब रहे मोह, प्रेम में,
वाह! क्या मौसम है रूमानी,
सर सर सर सर... सरल, सलील, चली वात आर्द्र, मस्तानी|