Monday, 28 October 2013

दिन अच्छा है|

सुबह सुबह चिड़िया आकर बगल में बैठ गयी और चेह्कने लगी एक राग तो लगा कि दिन अच्छा है|

कमरे से निकला तो वरांडे में अनार छील रही थी वो सुंदर नार तो लगा कि दिन अच्छा है|

जिस रस्ते में किसी भयंकर दुर्घटना के कारण बिखरे पड़े थे कभी कांच, उसी राह पर फूलों का दिखा जाल तो लगा कि दिन अच्छा है|

ओस से सनी घास कि धार पर सूर्य कि किरणों वाला चमकीला रथ देखा सवार तो लगा कि दिन अच्छा है|

कल रात सपने में आई थी जो परी उसे सोच चेहरे पे खिल आई मेरी बांंछ तो लगा कि दिन अच्छा है|

कल जो बच्चा भूख के मारे बिलख रहा था वो मिट्टी के घोड़ों से खेलता दिखा आज तो लगा कि दिन अच्छा है|

आलसियों ने किसी की मदद करते समय अपने आलस्य को दिया त्याग तो लगा कि दिन अच्छा है|

वही कुत्ता जिसने कल मुझे काटा था आज बदमाशों को रहा था काट तो लगा कि दिन अच्छा है|

 किसी यंत्र से नहीं पर जब केवल मनुष्यों से हुई बात तो लगा कि दिन अच्छा है|

 'चाहे कुछ भी हो कल, आज देखते है कि क्या होता है' जब दिल में आया  ये ख्याल तो लगा कि दिन अच्छा है|

 अन्न का चाव न होने के बावजूद भी जब भोजन कि महक ने जगाई आस तो लगा कि दिन अच्छा है|

चाहे क्षणभर के लिए ही सही पर खुद से हुआ जब साक्षात्कार तो लगा कि दिन अच्छा है|

No comments:

Post a Comment