जब सड़कों पे पड़ी पटाखों के चिथड़ों कि कतार लालिमा बिखेरती है...
जब रात भर अनारों,चक्रियों और फुलझड़ियों का धुँआ ठंडे कोहरे से लिप्त होकर सूर्य कि किरणों को और भी केसरी कर देता है...
जब अगली सुबह गरीब बच्चे, अधजले, बचे-खुचे पटाखों को सड़क के किनारे उमंग और आस कि निगाहों से ढूँढते हैं...
जब माँ अपनी औलाद कि पटाखों के ताप से जली हुयी उँगलियों को चुमते हुए उनपर बर्फ मलती है...
जब शरारती बच्चे लड़के के दुपट्टे में चुपके से पटाखों कि लड़ी बाँध देते हैं...
जब बाप अपने डरते हुए बच्चे को पहली बार पटाखा सुलगाना सिखाता है...
जब वही बच्चा कुछ सालों बाद दिलेरी से हाथ में लेकर बम्ब छुटाता है...
जब भाई पटाखे कम-ज़्यादा होने पर लड़ते झगड़ते है पर जब आतिशबाज़ी करने कि बारी आती है तो अपने दोनों के पटाखे एक ही थैले में मिला लेते हैं...
जब जूआ खेलना एक मस्त रिवाज हो जाता है...
तब स्मृतियाँ कागज़ पर यूँ ही दीपों कि आवली बन कर उतर आ जाती हैं|
जब रात भर अनारों,चक्रियों और फुलझड़ियों का धुँआ ठंडे कोहरे से लिप्त होकर सूर्य कि किरणों को और भी केसरी कर देता है...
जब अगली सुबह गरीब बच्चे, अधजले, बचे-खुचे पटाखों को सड़क के किनारे उमंग और आस कि निगाहों से ढूँढते हैं...
जब माँ अपनी औलाद कि पटाखों के ताप से जली हुयी उँगलियों को चुमते हुए उनपर बर्फ मलती है...
जब शरारती बच्चे लड़के के दुपट्टे में चुपके से पटाखों कि लड़ी बाँध देते हैं...
जब बाप अपने डरते हुए बच्चे को पहली बार पटाखा सुलगाना सिखाता है...
जब वही बच्चा कुछ सालों बाद दिलेरी से हाथ में लेकर बम्ब छुटाता है...
जब भाई पटाखे कम-ज़्यादा होने पर लड़ते झगड़ते है पर जब आतिशबाज़ी करने कि बारी आती है तो अपने दोनों के पटाखे एक ही थैले में मिला लेते हैं...
जब जूआ खेलना एक मस्त रिवाज हो जाता है...
तब स्मृतियाँ कागज़ पर यूँ ही दीपों कि आवली बन कर उतर आ जाती हैं|
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