Thursday 22 May 2014

मृदा

लाल, भूरी, पवित्रा तू पाक साफ़
है क्या तू, तुझे हम माँ कहते हैं
कभी तुझे माथे पे लगाकर सलाम करता हूँ,
तिलक कि तरह कभी मूर्ति बनाकर पूजता हूँ|
कीचड़ कहते थे लोग पर दोस्त थी तू
कभी खाना तो कभी रंग
कभी महल तो कभी लड्डू
जो आकार दूँ वो कम था
कलाकार भी बनाया तुने ही, 'कला' कहना भी नहीं था आता जब
लालिमा उगते सूरज सी तेरी
या बुराँस का फूल हो कोई
तुझसे से बनाया आशियाँ
अपना चटक रंग
कोई मिलावट नहीं, कोई बाहरी तत्व नहीं
छोटा था वो घर पर क्या महक थी उसकी
 सुबह जैसी
जलती हुई गर्मी में ठंडक
शुष्क शीतकाल में गरमाहट थी उस मिट्टी के घर में
वर्षा होती थी तो ऐसा लगता था
कि मानो पानी पी रहीं हैं इसकी दीवारें
पुनः किशोर हो खिल उठे जैसे
तुझसे बना था चूल्हा वो
पकवान भले ही ना के बराबर हों जिसमें
पर स्वाद ऐसा कि भगवान भी इंसान हो जाए
उगे तुझमें ही फल, फूल, खेत, खलियान और धान
नींद भी तेरे ऊपर लेट कर, तुझे ही ओढ़ कर
तुझमें ही मिल जाऊंगा एक दिन
ओ मृदा
फिर बनूँगा पेड़ एक
खेलेंगे बचे जिसकी छाँव में
ओ मृदा
सदैव तेरे सपर्श में
सदेव तेरी शरण में
मुक्त...हे! मृदा|

Thursday 15 May 2014

राहों

उमर हो गई महबूब कि...
अब सफर हो गया... आसान|
जो भी सोचा था,
वो मिलेगा क्या?
सोचता हूँ यही अब यहाँ|

राहों पर... बैठ कर जब हम,
देखते हैं... तब सुबह|
चलते हैं, फिर फिसलते हैं,
चोट खायी है, तबी चला पता|
कि राही है... हम...
आज़ादी... के ग़ुलाम|


राही हूँ मैं,
और तू है मंज़िल|
राह भी मैं... तू सफर|
रात होती है... जी मचलता है|
डर है जिस बात का... वो कहाँ?

राहों पर... बैठ कर जब हम,
देखते हैं... तब सुबह|
चलते हैं, फिर फिसलते हैं,
चोट खायी है, तबी चला पता|
कि राही है... हम...
आज़ादी... के ग़ुलाम|


भूख लगती है, प्यास मिटती नहीं|
लंबा रास्ता... छोटा सा जहान|
धूप जलाती है,
जंगल झुलसते हैं,
आग कि लपटों में... है इंसान|

राहों पर... बैठ कर जब हम,
देखते हैं... तब सुबह|
चलते हैं, फिर फिसलते हैं,
चोट खायी है, तबी चला पता|
कि राही है... हम...
आज़ादी... के ग़ुलाम|


कोई हमराही... गर मिले जब मुझे,
ले चलूँगा उसे... भी वहाँ|
तू मिलेगा तो... फिर है मंज़िल बि क्या|
तब यही करूँगा... मै दुआ...
कि... ए... खुदा,
साथ मेरे हो तू...
हर मोड़ पे अर हर जगह|

राहों पर... बैठ कर जब हम,
देखते हैं... तब सुबह|
चलते हैं... फिर फिसलते हैं,
चोट खायी है, तबी चला पता|
कि राही है... हम...
आज़ादी... के ग़ुलाम|