Wednesday 10 September 2014

मुक्त?

मैं हूँ गुलाम अपनी नियति का,
मैं हूँ मुक्त? मैं हूँ मुक्त?
तू है गुलाम अपनी सामाजिकता की,
तू है मुक्त? तू है मुक्त?

तू और मैं खड़े हैं जिस धरातल पे, 
वो द्रव्य नहीं है कठोर न ही है वो ठोस
गिरते ही चले जायेंगे यदि उड़े नहीं तो,
उड़ान भरनी सीखी है क्या तूने कभी?
हम हैं गुलाम गुरुत्व के,
हम हैं मुक्त? हम हैं मुक्त?
मैं हूँ गुलाम अपनी नियति का,
मैं हूँ मुक्त? मैं हूँ मुक्त?
तू है गुलाम अपनी सामाजिकता की,
तू है मुक्त? तू है मुक्त?


है जो ये समाज धोका है या है ये छलावा?
इसकी ज़ंजीरें दिखती नहीं फिर भी तू हिल सकती नहीं,
प्राण घोट देंगी यदि तोड़ी नहीं गयी, शक्ति है क्या तुझमें...है क्या?
तू है गुलाम अपनी अबलता की,
तू है मुक्त? तू है मुक्त?
मैं हूँ गुलाम अपनी नियति का,
मैं हूँ मुक्त? मैं हूँ मुक्त?
तू है गुलाम अपनी सामाजिकता की,
तू है मुक्त? तू है मुक्त?


है जो ये कर्मठता तेरी, कर्म है ये या व्यर्थ है कोई?
इसकी दीवारें इतनी भव्य हैं की इससे परे की सुन्दरता भेद नहीं पाती तुझे,
कल्यंत्रिका हो जाएगी अगर फांद नहीं सकी इसे,
विश्वास भरी कूद लगानी आती है क्या तुझे?
तू है गुलाम अपने घनों की,
हम हैं गुलाम अपनी आजीविका के,
तू है मुक्त? हम हैं मुक्त?
मैं हूँ गुलाम अपनी नियति का,
मैं हूँ मुक्त? मैं हूँ मुक्त?
तू है गुलाम अपनी सामाजिकता की,
तू है मुक्त? तू है मुक्त?


है जो ये अँधेरा द्वार के उस पार,
अनदेखा है ये या जाना पहचाना?
इसकी चकाचौंध है इतनी की रौशनी हमें छू नहीं सकती,
मूक, अंध और बहरे हो जायेंगे अगर पार नहीं किया इसे तो,
साहस है तुझमें इतना...है तुझमें दम?
तू है गुलाम अपने भय का,
है तू मुक्त? है तू मुक्त?
हम हैं गुलाम अपनी संकीर्णता के,
हम हैं मुक्त? हम हैं मुक्त?
वो हैं गुलाम अपनी रीतियों के,
वो हैं मुक्त? वो हैं मुक्त?
सब हैं गुलाम हर इसके-हर उसके,
मैं हूँ गुलाम अपनी नियति का,
मैं हूँ मुक्त? मैं हूँ मुक्त?
तू है गुलाम अपनी सामाजिकता की,
तू है मुक्त? तू है मुक्त?
तू है मुक्त? तू है मुक्त?
तू है मुक्त? तू है मुक्त?
तू है मुक्त? तू है मुक्त?