Sunday 20 November 2022

पाताल में

आकाश का बोझ सर पे गिरा,
धरती फटी, में जा गिरा,
गिरता रहाआआआआ...........
पाताल में... पाताल में... पाताल में...

जब था ज़मीन पे,  

सुनता में था।
आवाज़ों से बचता में था,
आवाज़ें... आवाज़ें... आवाज़ें...
अंधेरे की चादर ओढ़े,
चीख़तीं हैं जिंदा लाशें,
मेरे सामने, मेरे ख़्वाबों में,
जब था ज़मीन पे...
तब मै मरा... तब मै मरा... तब मै मरा
गिरता रहाआआआआ...
पाताल में, पाताल में, पाताल में...

पाताल में जब मै गिरा,
बचता रहा... बचना सका,
गिरते हुए आँखें खुली,
आँखें खुली... कुछ ना दिखा,
अंधेरा, अंधेरा, अंधेराआआआआआ...
अंधेरे में... गुम हो गया,
आवाज़ों ने पीछा किया,
मरते हुए... भी डरता रहा,
गिरता रहाआआआआ...
पाताल में, पाताल में, पाताल में...

और जब मै उठा

मै उठा...
पाताल में...

मै उठा,

ताप से उसके 

मैं जल उठा,

राखों से मै...

तब जा मिला,

जलता रहाआआआआ...
पाताल में, पाताल में, पाताल में...,



तब मेरी आँखों ने देखा 

पहली बार उस अंधेरे को,
घेरे था मुझे जो,  

मेरे जीवन भर के सवेरे को,
 

भस्म हो गया वो अंधेरा 

मेरे जलते शव के प्रकाश में,
नहीं रहा अब कोई डर बचा

मेरे हृदय-या-दिमाग के पास में,
भाग गए वो सारे स्वर सभी

उस दैत्य अंधेरे के पाश में,
सो सकूंगा अब मै चैन से  

क्यूँ की मुक्ति मिली है अब मुझे...

पाताल में, पाताल में, पाताल में |