Tuesday 24 July 2012

मै ! ... ?


क्या उतम है और क्या अपूर्ण ये मुझे कौन बताएगा ?
मै नहीं जानता मुझे क्यूँ बुलाया गया इस धरती पर 
किन्तु मुझे ये आभास है कि कोई अज्ञात ही मुझे ले जायेगा।

मैने देखा है इस जहान को अपनी मासूम नज़रों से, 
उन आखों में कभी थी एक सुन्दर दुनिया। 
अब एक सपना है जो अतीत के पल्लू से लटका हुआ है 
और भविष्य कि उस कमज़ोर रस्सी का सिरा ढूंड रहा है। 
पर अब इस वर्तमान कि कलम का क्या 
जो ज़िंदगी के काग़ज़ पे इश्क़ का अंधा फ़रमान लिखती है? 

इश्क़ कि इस दुनिया पे शक है मुझे मगर नफ़रत करने वालों को भी इश्क़ करते देखा है।

वो पूजते हैं मुझे विनम्र समझ के लेकिन 
वो ये नहीं जानते कि मै ही वो छिपी इर्ष्या हूँ 
जो नफ़रत को जनम देती है।
मै कौन हूँ? मेरा नाम है क्या? ये मै ख़ुद नहीं जानती,
किन्तु आप मुझे जानने कि कोशिश मे कहीं खुद से ही इर्ष्या ना करने लगें।

नफ़रत का वो दौर निकल भी गया और मै यहीं रही।
इन थकी हुई आँखों से मैने एक बार फिर तुझे देखा, 
तुझमे मुझे तेरा और सिर्फ़ तेरा सत्य दिखा। 
अचानक से तू मुझे ख़ूबसूरत लगने लगा ।
मुझे नहीं पता था कि इस तरह ज़िंदगी मेरा नज़रिया बदल देगी, 
तेरे पास होने पर, तेरे साथ होने पर
नफ़रत से घायल इन आँखों को ठंडक मिलने लगेगी।

एक विद्युत सी जैसे दौड़ी हों मेरे बेजान बदन में 
जिसने दिल और दिमाग का मेल कर दिया। 
ह्रदय पुनः चिंतन करने लगा जिसमे एक नयी 
धड़क्ती अग्नि का प्रवाह हुआ और मस्तिष्क फिर से सव्पनों में विमुक्त होने लगा।

हिंसा के इस उजाड़ शेहर में, 
नफ़रत के उन अंधेरे खंडरो के मलबे से 
सदियों बाद फिर एक पवित्र प्रकाश फूटता है।
जो सारे आस्मां को रौशनी में सराबोर कर देता है।
मै खड़ी तेरा हाथ पकड़े, उस गगन को निहारती रहती हूँ, 
और कहती हूँ 
“अब हमारे पास ये सारा ब्रह्मांड है, आओ प्यार की एक नयी कहानी रचदें” 

मेरे सवाल अभी भी अनसुल्झे हैं पर शायद; 
यही वो रहस्य है जो प्रेम को ज़िंदा रखता है, 
वही उत्तम है और वो ही अपूर्ण।

1 comment:

  1. I am speechless sir... it almost seems like a soliloquy being enacted in a theatre. The audiences are in rapt attention uttering no word... and just the actor speaks... and the truth within his heart speaks...

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